PANKAJ KUSHWAHA
में अनमोल ….जिसका नाम ही बस जिन्दा है बाकी तो में लाश बन चुकी हूँ , लाश जो देखती है ,सुनती है …बस बोल नहीं पाती ….में तो लाश बन ही चुकी हूँ लेकिन क्या पता इस लाश की कहानी सुनकर ,इस देश में दो चार और अनमोल लाश बन्ने से बच जाए.
12 साल की उम्र थी मेरी ……..जिसकी कोई सोच …कोई अरमान नहीं थे …कोई भी आता और उसे अपने ही रूप में ढल के चालला जाता …बिलकुल एक चाक पर चढ़ने वाली मिटटी की तरह .
इधर कई ..जिम्मेदारियां …घुघट के रूप में मेरे सर पर रख दी गयी …और उधर चाक पर कुम्हार ने कच्ची मिटटी ..इधर कच्ची उम्र में ही …जिसे अपनी गुड्डी के अलावा ..किसी और चीज़ का मतलब तक नहीं पता था …तैयार हो चुकी थी …किसी और घर की रोनक बढाने के लिए ….और उधर चाक पर कच्चा घड़ा भी मेरे संग चढ़ चूका था ….
उधर कुम्हार ने तो जल्दबाजी में कच्चे घड़े को किसी और के हाथ में थमा दिया ….लेकिन मेरा क्या होगा ..कहीं में टूट तो नहीं जाउंगी …इसकी परवाह किये बिना ही ..मेरे बाप ने एक सामन की तरह किसी और के हाथो में थमाकर बेच दिया मुझे ….
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दिन भर पीसती रही …कभी बूढी अम्मा के तानो में तो कभी रात में उनके जिस्म की भूख को शांत करने वाले निवाले के रूप में …..हर तरफ से दर्द देने की कोशिश की गयी ….कोशिश की गयी बाँधने की …मेरी मुस्कराहट को …मेरे बचपन को ….बंद कमरे में फैले अँधेरे में लिप्त मेरी चुप्पी और खामोश पड़ी सिसकियों से ….
जानती थी नहीं निकल सकती ….इस अँधेरे से …इस शोषण से …अगर निकल सकती है तो …वो है मेरी लाश ….मेरी लाश ……शायद इसलिए जल्दी लाश बन्ने के चक्कर में अपने होशो -आवाज़ खोकर बस लाश बानने के लिए में दिलो ..जा से जुट भी गयी …
में हूँ अनमोल ……अनमोल बस कहने में ही ….क्यूंकि अनमोल होती तो शायद में इस लाश की जगह नहीं होती ….बल्कि खुली हवा में सबके प्यार के बीच पल -बढ़ रही होती …….
शायद मेरी इस कहानी के बाद आप समझ पाए …की में हूँ अनमोल ……..
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