Source: Dainik Bhaskar
बदलती जीवनशैली और बढ़ी क्रय शक्ति का असर हमारी रसोई पर भी पड़ा है। हम क्या खाते हैं सिर्फ इसमें ही बदलाव नहीं आया है, बल्कि हम कैसे पकाते हैं और खाद्य पदार्थों को कैसे स्टोर करते हैं, यह परिपाटी भी बदल चुकी है। मसलन मटके का स्थान प्लास्टिक बोतल ने ले लिया है चमचमाती स्टील का स्थान माइक्रोवेव ग्रेड प्लास्टिक और सेरेमिक बर्तनों ने ले लिया है।
लोहे की कढ़ाई के स्थान पर नॉन स्टिक कढ़ाई और फ्राइंग पैन आ गए हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि नवीनतम तकनीक ने हमारी जिंदगी को सुविधा संपन्न बनाया है, लेकिन प्रश्न उठता है कि ये किस हद तक सुरक्षित है? क्या टेफ्लॉन की कढ़ाई में पनीर को डीप फ्राइ करना सुरक्षित है? प्लास्टिक के जार में नींबू का अचार कितना सुरक्षित है? माइक्रोवेव बोल में चिकन करी पकाना स्वास्थ्य के लिहाज से कितना सुरक्षित है? आइए जानते हैं इनसे जुड़े खतरों के बारे में।
प्लास्टिक की गुणवत्ता
विशेषज्ञों के मुताबिक प्लास्टिक से बने कुक वेयर और स्टोरेज मटेरियल से उपजी आशंकाओं को हमने नजरअंदाज कर दिया है। उदाहरण के तौर पर प्रत्येक प्लास्टिक बोतल 1 से 7 तक के ग्रेड पर आंकी जाती है। यह अंक बोतल के निचले हिस्से में बेहद बारीक अंकित रहता है। प्रत्येक अंक का मतलब प्लास्टिक में मौजूद जहर की मात्रा दर्शाने के लिए किया जाता है। 3, 6 और 7 नंबर की प्लास्टिक सबसे खतरनाक है।
3 नंबर वाली प्लास्टिक में पॉलीविनाएल क्लोराइड (पीवीसी) होता है। यह जलने पर हाइड्रोजन क्लोराइड और डायोक्सिन छोड़ता है, जो कैंसर और प्रजनन संबंधी समस्याओं का जनक हो सकता है। इसी तरह पैट बॉटल भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। जूस या सॉफ्ट ड्रिंक की बोतल में भी पानी भरकर नहीं रखना चाहिए।
नॉन स्टिक की असलियत
नॉन स्टिक बर्तनों में कोटिंग के लिए पीएफओए का इस्तेमाल होता है, जिसमें कैंसर देने वाले तत्व पाए जाते हैं। इस बारे में हुआ अध्ययन बताता है कि पीएफओए लीवर, पेंक्रियाज और टेस्टिस का कैंसर दे सकता है। इसकी वजह से महिलाओं में मिसकैरिज तक हो सकता है। यही नहीं, भारतीय पाक शैली में जिस तापमान पर खाना बनाया जाता है, उसमें तो पीएफओए और भी ज्यादा खतरनाक असर छोड़ता है।
सेरेमिक और मेलामाइन से जुड़े खतरे
इन जैसे मटेरियल्स को लेकर भारत में कोई निश्चित गुणवत्ता मानक नहीं हैं। सेरेमिक वेयर में ग्लेजिंग के लिए अपनाई जाने वाली तकनीक में लेड का इस्तेमाल होता है। पश्चिमी देशों में इसी वजह से यह प्रतिबंधित है। इसे अगर व्यवस्थित और सुरक्षित तरीके से एप्लाई नहीं किया गया है, तो इसमें रखे जाने वाले खाद्य पदार्थों में लेड का जहर फैल सकता है। इसी तरह मेलामाइन बर्तनों में गर्मागर्म भोजन रखने से फॉर्मेलडिहाइड रसायन का स्राव होने लगता है। शरीर के भीतर लगातार और बड़ी मात्रा में जाने से ये किडनी में स्टोन, उलटी और कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकते हैं।
एल्युमीनियम
शोध बताते हैं कि एल्युमीनियम के प्रति ज्यादा एक्सपोजर अलझाइमर दे सकता है। विशेषज्ञों की मानें तो गर्म खाना एल्युमीनियम फॉयल में पैक करने से बचें। बेहतर होगा कि एनोडाइज्ड एल्युमीनियम कुकवेयर का प्रयोग करें। यह अपेक्षाकृत सुरक्षित है।
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