Source: amanprabhat
बस्ता उठाने की उम्र मे तंबाकू उत्पादों एवं अन्य खतरनाक कामों को अंजाम दे रहें हैं बाल मजदूर
अमरोहा। जिले में श्रमअधिकारी का बाल मजदूरों की और कोई ध्यान नही है। न ही स्वयं सेवी संगठन बाल मजदूरों के हित में कोई कारगर कदम उठाते दिख रहें है। मंहगाई के बढ़ते ग्राफ के कारण घर का खर्च न उठापाने की दशा में कितने ही अभिभावक अपने बच्चों के हाथों में किताबों के स्थान पर खतरनाक औजार थमा रहें हैं, इस कारण जिले भर में बालमजदूरों की संख्या बढ़ती जा रही हैं बस्ता उठाने की उम्र में बच्चे दोजून की रोटी के लिए खतरों से खेल रहें हैं।
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नौगावां सादात (अमरोहा) के एक टाकिज़ में काम करने वाला बाल मजदूर जान जोखिम में डाल कर बिजली के ऊंचे खंबे पर चढ़कर पोस्टर लगाते हुए |
जिले के हजारों बच्चे तंबाकू उत्पाद के कार्य में लिप्त हैं तो बहुत से फिल्मो के पोस्टर, साईकिल की ट्यूब का पंचर बूंट पोलिश तथा होटलों पर बर्तन धोने के काम में लगे हैं। श्रम विभाग इस पर कोई ध्यान नही दे रहा है जबकि इन बालमजदूरों के अभिभावक चन्द सिक्कों की खातिर इनके कोमल जीवन को नरक बना रहें हैं। कई बार विभाग द्वारा जिले में अभियान चला कर इन बच्चो को चाय की दुकानो से व साईकिल मिस्त्रिायों से आज़ाद करा गया लेकिन अभियान समाप्त होने के बाद फिर यही हाल हो जाता है इस के लिए कोई और नही बल्की इन मासूमो के परिजन जिम्मेदार है वह अपने बच्चो को भविष्य बनाना ही नही चाहते बचपन मंे उन्हे ऐसी आदत डाल देते है कि यह बच्चे स्कूल का नाम भी लेना भूल जाते है चाय की दुकान पर काम करने वाले बच्चो केा पचास रूपये प्रति दिन तथा एक समय का खाना दिया जाता परिजनो के पास जब शाम को पचास रूपये पहुँच जाते है तो उन्हें परिवार का खर्च चलाने में सहायता मिलती है जबकि बीड़ी कारखानों में काम करने वाले बच्चे एक हफ्ते मंे दो तीन सौ रूपये ही कमा पाते हैं। विभाग यदि सख्ती से इस पर ध्यान दे तो बड़ी संख्या मे इन बच्चो का बचपन वापिस लौटाया जा सकता है लेकिन किसी को इसकी कोई परवाह नही है। झूठे बर्तन मांझने वाले तथा तंबाकू उत्पाद का कार्य कारने वाले यह बच्चे केवल होटल एवं फैक्ट्रियों तक सीमित रह जाते है इसके अलावा सिनेमा हाल मे चाय व ब्रेड बेचने वाल बच्चों का तो बुरा हाल है यहां पर लगने पाले अश्लील पोस्टरों से उनकी मानसिकता बदल रही है कोई भी इन मासूमों को सही राह नही दिखा रहा। कई बच्चे तो सिनेमा हाल में पोस्टर लगाने का ही काम कर रहें हैं जिस कारण इनकी जिन्दगी विकसित नही हो पा रही है जिस उम्र मे उनके कन्धें पर बस्ते का बोझ होना चाहिए वह रिक्शे में सवारी खीच रहें तथा बोझा ढो रहें है आये दिन इस तरह का मामला सामने आ रहा है लेकिन अधिकारियों की नजर इस पर नही पड़ रही यही कारण है कि जिले में बड़े पैमाने पर बाल श्रम कराया जा रहा है। जिसके लिए परिजन से ज्यादा अधिकारी जिम्मेदार हैं।

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