भगवान को नहीं चाहिए रिश्वत!

Tuesday, 9 October 2012

दीपिका राठोड़


दीपिका राठोड़ के नजरिये से...

हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म "ओह माय गोड़" ने हमे यह सोचने पर मजबूर कर दिया है की किस तरह हमारा देश भगवन के नाम पर अपनी खून पसीने की कमाई को जूठे पाखंडी लोगो की गोद में दाल देते! समस्या यहाँ साधुओं की बदती तादात से नहीं है, समस्या हमारे देश में बड़ते अन्धविश्वास और अन्धविश्वाश करने वालो से है!
जिससे ना ही सिर्फ लोगो की खून पसीने की कमाई बर्बाद हो रही है बल्कि बर्बाद होते दूध दही चीनी मिष्ठान भी है! जो नालियों में बहने से अच्छा किसी गरीब इंसान के पेट में जाये ताकि वह हष्टपुष्ट रह सके और कुछ काम कर के अपने साथ साथ अपने परिवार का भी पेट भर सके! 

कहने को हमरे ग्रंथों में लिखा की सब एक समान है फिर चाहे बात किसी जाती के इंसान की हो या विभिन धर्मो के ईश्वरों की! फिर क्यूँ मंदिर के बहार खड़े भिखारी को अन्दर जाने की आनुमति नहीं है! क्यूँ उससे पुरे दिन चाहे बारिश हो या धुप, ठण्ड हो या गर्मी बहार खड़े रह के किसी के भीख देने का इंतज़ार करना पड़ता है! 
आज की बडती महगाई में लोग एक भिखारी को १० रुपे या दूध दही चावल देने से पहले दस बार सोचते है, अगर वही किसी पंडित साधू या संत ने भगवन के  नाम १००० रुपे चढाने को कहा तोह मिनट से पहले जेब से निकल आते है क्यूँ ? क्यूंकि उस साधू या संत ने उन्हें जूठा दिलासा दिया की चडाबा चडाने से उनकी मनोकामने पूरी होगी या उनके जीवन के कष्ट मिटेंगे वही उन्हें उस भिखारी की सची पुकार नहीं सुनाई दी जो रो रो के कह रहा है "खाने को कुछ दे दो"! आज की तेज़ रफ़्तार वाली जिंदगी ने मनो इंसानियत को मार ही डाला है!
हमने अपनी आँखे जान बुझ के बंद कर राखी है ताकि हम अपना समय उन चीजों में ना लगा दे जो वाकई में हमे दिखती है हमारे दिल को छूती है! किसी ग्रन्थ या किताब में ऐसा नही लिखा की भगवान् को दूध दही मेवा मिष्ठान का भोग लगेगा तभी भगवान्  प्रशन्न होंगे! ये बात आप भी जानते है और हम भी की कहने को मंदिर में राखी मूर्त मानो तो भगवान् है और न मनो तोह एक पत्थर! मंदिर में बैठे भगवन भोग कैसे स्वीकार कर सकते जब तक बहार बैठे उनका अपना कण भूखा हरा खड़ा है! 
हमारी इस रिपोर्ट के ज़रिये हम ये नहीं कहना चाहते की आप जो ये अपनी श्रधा से धन पान अर्पित करते हैं गलत है या दिखावा है न ही हम उन पुज्निये विज्ञानी पंडित या साधुओं को गलत साबित करना चाहते है, कहने का तात्पर्य बस इतना हैं की श्रधा से करा हुआ हर काम सिद्ध होता है परन्तु अगर आपको दिख रहा है दूध दही जैसे मूल्य खान पान का वैभव ख़राब हो रहा है तोह उससे वार्बाद होने से बचाएँ! कुछ ऐसा करें जिस आपकी श्रधा भी बने रहे और कुछ बर्बाद भी ना हो! जैसे की मंदिरों में चढाया हुआ वैभव नालियों में बहने की वजाए ऐसे जगह जाये जहाँ उसे प्रशाद के रूप में भक्तो और बहार भूखे बैठे लोगो को दे सके! 
भगवान की ख़ुशी सबकी ख़ुशी में है!

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