23 साल बाद मिला तलाक

Monday, 22 October 2012


 

मुम्बई। 23 साल पहले तलाक के लिए अर्जी दाखिल करने के बाद आखिरकार 11 अक्टूबर 2012 को बॉम्बे हाईकोर्ट से बीएमसी के एक रिटायर्ड कर्मचारी को तलाक मिल गया। इस कर्मचारी की एक स्कूल टीचर से शादी 16 मई 1989 को हुई थी। शादी के तीन महीने बाद ही पत्नी अपनी ससुराल छोड़कर चली गई। वह संयुक्त परिवार में साथ नहीं रहना चाहती थी। 23 सालों में दम्पती के वापस साथ होने की सभी संभावनाएं खत्म देखकर हाईकोर्ट ने उनका तलाक मंजूर कर लिया।

सितम्बर 1991 में पत्नी के अलग रहने के 2 साल बाद पति ने तलाक के लिए अर्जी दायर की, जिसे फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया। वर्ष 1994 में पति ने लोक अदालत और महिला समितियों का दरवाजा खटखटाया, लेकिन पत्नी ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

बार-बार खारिज 
जून 1998 में पति ने फैमिली कोर्ट में दूसरी अर्जी दाखिल की, जिसे खारिज कर दिया गया। इतना ही नहीं, कोर्ट ने पत्नी की अर्जी भी खारिज कर दी, जिसमें खर्चे और अलग मकान की मांग की थी। पति की दायर याचिका भी हाईकोर्ट ने 2005 में खारिज कर दी।

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
आखिरकार पति ने 11 जुलाई 2005 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां से 27 जुलाई 2011 को मामला वापस हाईकोर्ट में भेजा गया और कहा गया कि कोर्ट 6 महीनों में फैसला सुनाए। पत्नी पति को परेशान करना चाहती थी। वह तलाक भी न लेना चाहती थी, साथ भी रहने को तैयार न थी।

पति के अपराध के लिए पत्नी को सजा नहीं
बम्बई हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि ग्राम पंचायत की एक सदस्य को केवल इस आधार पर अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता कि उसके पति ने सरकारी जमीन या सार्वजनिक सम्पत्ति पर कब्जा किया है। कानूनन अयोग्य ठहराए जाने के लिए यह जरूरी है कि अवैध कब्जा स्वयं सदस्य ने किया हो न कि उसके पति या पत्नी ने। कोर्ट ने पुणे के मंडलीय आयुक्त के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उन्होंने कोल्हापुर के फाए गांव की सरपंच एल्लुबाई कांबले को इस आधार पर अयोग्य घोषित कर दिया था कि वह अपने पति के साथ रह रही हैं जिसने सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा है। कोर्ट ने कहा कि किसी को इस आधार पर अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता कि उसके पति या पत्नी ने कोई शिकायत लायक काम किया है। Source: patrika

0 comments:

Post a Comment

रफ़्तार 24 न्यूज़