हर जगह बंधी हैं मासूम लड़कियां ...

Tuesday, 9 October 2012



दीपिका राठोड़ की विशेष रिपोर्ट 

वैसे देखा जाए तोह यह सिर्फ नोगावा सादात की समस्या नहीं है ! चाहे शहर हो या गाँव लडकियाँ हर जगह बंधी हुई है, कहने को हम एक स्वतंत्र देश में है परन्तु लडकियों के लिए इस स्वतंत्रता का कोई महत्व नहीं रहा ! वह चाहाकर भी आज़ाद नही रह पाती।

लड़कियों के साथ बढती हुई समस्याएं से दिन पर दिन लडकियों का आताम्मानोबल कम होता जा रहा है, जिससे साथ ही देश की उनत्ती पर भी असर पड़ रहा है! हिंदुस्तान में जितनी लडको की संख्या है उतनी ही लडकियों की भी है, सोचिये ज़रा अगर देश की आधी जनता यानि की लडकियाँ अगर एक कटपुतली बन क रह गयी तोह क्या देश आगे बाद पायेगा ? 
नहीं, अगर देश को आगे बडाना है तोह सबको साथ चल के उसके बारें में सोचना होगा! हैरानी तोह तब होती है जब देश का कानून ही देश वासियों की रक्षा करने से हाथ पीछे कर लेता है! केहने को हमारे देश हिंदुस्तान में, नारी को पूजा जाता है उसका सम्मान किया जाता है पर साथ ही किसी अँधेरे में उसकी इज्जत के साथ खिलवाड़ भी होता आ रहा है! 
दिल्ली जैसे बड़े शहर में ऐसी बातें आम हो गई है! दिल्ली में बड़ते जुर्म की झलक हमें आय दिन अखबारों और समाचारों में मिल जाती है! अगर आकड़ो की तरफ देखा जाये तो दिल्ली शहर में ही पिछले ३ माह में करीबन ३५ योन शोषण के केस सामने आये है! दहलाने वाली बात तोह यह है की ऐसे दुष्कर्म करने वाले और कोई नहीं अपने ही जान पहचान के लोग होते है, जो अँधेरे के सन्नाटे में नारी जैसी पाक जाती के साथ खिलवाड़ करने का जुर्म कर बैठते है! बात अगर नारी तक सिमित होती तोह शायद इतना आश्चर्य नहीं होता लेकिन अगर बात एक छोटीसी हस्ती खेलती बच्ची पर अति है तोह रूह अन्दर तक कांप उठती है! एक छोटी बच्ची जिससे नवरात्रों के त्यौहार पर दुर्गा, कलि सरस्वती की तरह पूजा जात है वही उसी के साथ दुष्कर्म करके उसका बचपन उससे छीन लिया जाता है! 
ऐसे में अगर बात एक ऐसी लडकी की हो जो देर रात घर लौटी है दफ्तर से ताकि वह अपना और अपने परिवार को एक सुखद ज़िन्दगी  दे सके, अगर बदकिस्मती से उसके साथ कुछ गलत होता है तो हमारे समाज के लोग उसे ही दोषी ठहराते है, यह कह की लडकी के ही चाल चलन ठीक नहीं थे, यहाँ भी लडके के गुन्हा को आन्देखा किया जाता है जिससे उन्हें ऐसे दुष्कर्म करें का प्रोत्साहन मिलता है, लडको के साथ ही कानून भी इसी धरना को सच मनाते हुए अपने हाथ पीछे खीच लेता है! तो अब आप ही बताईये ऐसे हालातों में क्या स्तिथि सुधर सकती है या उससे सुधार जा सकता है! एक तरफ हम लडकियों को आगे बड़ने की प्रेरणा देते है उन्हें उत्साहित करते है दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाने के लिए और दूसरी ही तरफ ऐसे विचार प्रकट कर के उन्हें कदमो को ही रोक देते है! 
हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या यही है की या तो जुर्म को अनदेखा किया जाता है या पीड़ित को गलत ठहरा के जुर्म को बढ़ाबा दिया जाता है! 
आप ही बताईये क्या गलती थी उस छोटी से बच्ची की जिसने खेलने कूदने की उम्र में अपना बचपन खो दिया या उस औरत की जो बहार निकाली जिससे की अपने परिवार को सुखद ज़िन्दगी दे सके! 
क्या इस समस्या का हल निकलने की जिमेदारी सिर्फ सरकार की या कानून की है? हमारा कोई कर्त्तव्य नहीं है अपने देश क प्रति, उसको सुधारने के प्रति? 
जिस तरह आलवार की युवती ने आवाज़ उठाई जुर्म क खिलाफ हमें मेल भेज कर अगर इस्सी तरह हर पीड़ित लड़का या लडकी अपनी आवाज़ उठाएगा तो शायद हम अपने देश के सुधर क लिए उसकी जनता की सुरक्षा क लिए कुछ कर सकते है! वो केहते हैं ना "भगवन भी उनकी मदत करता है जो अपने मदत खुद करते है"!
हमें इस बात को समझना होगा की देश हमारा है सिर्फ कानून या सरकार के सोचने या कुछ करने से बात नहीं बनेगी! देश हमारा है तो हमें ही कुछ करना होगा! 
सम्बंधित समाचार 

0 comments:

Post a Comment

रफ़्तार 24 न्यूज़