गुटखे पर रोक को तंबाकू उत्पादक बताते हैं पक्षपातपूर्ण, कैंसर भले ही हो!

Sunday, 4 November 2012

नई दिल्ली। पूरे संसार में कैंसर के खिलाफ जंग में तम्बाकू के हर तरह से सेवन को नुकसानदायी माना गया है और भारत में गुटखे की वजह से होने वाले मुंह के कैंसर के महामारी स्वरूप को देखते हुए कई राज्यों ने इस पर रोक लगादी है।

इसके विपरीत गुटखा निर्माताओं के हित में काम करने वाली "स्मोकलेस टोबेको ग्रोवर्स एसोसिएशन" (एसटीए) ने गुटखा बिक्री के प्रतिबंध को "पक्षपातपूर्ण" बताते हुये कहा कि अभी भी बाजार में सिगरेट और बीडी की धडल्ले से बिक्री हो रही है। इस वक्त राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, केरल, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ, मध्य प्रदेश, मणिपुर, अरूणांचल प्रदेश, दिल्ली और गोवा में गुटखा की बिक्री प्रतिबंधित है। एसटीए ने कहा है कि खाद्य सुरक्षा एवं मानक नियामक कानून 2011 के तहत गुटखा की बिक्री प्रतिबंधित नहीं करनी चाहिए क्योंकि गुटखा को सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद कानून-2003 (सीओटीपीए) के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है।

एसोसिएशन के सदस्य सीके शर्मा ने बताया कि संघ के सदस्यों ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद से मुलाकात की और बताया कि किस प्रकार से केन्द्र की सलाह पर 14 राज्यों में गुटखा बिक्री को प्रतिबंधित किया गया जिसके चलते तंबाकू उत्पादन से जुडे करीब चार करोड लोग प्रभावित हुए हैं। स्वास्थ्य मंत्री से मुलाकात करने वाले प्रतिनिधि मंडल में शामिल शर्मा ने कहा कि स्वास्थ्य मंत्री ने इस मामले पर गौर करने और इसके संबंध में उचित सिफारिश देने के लिए एक उप-समिति बनाने का भरोसा दिया है। शर्मा ने कहा कि गुटखा को तंबाकू उत्पाद की क्षेणी में रखते हुए भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने इसकी बिक्री प्रतिबंधित कर दी है।

यह पक्षपातपूर्ण है क्योंकि सिगरेट और बीडी में गुटखा से अधिक मात्रा में तंबाकू होती है, लेकिन उसकी बिक्री को प्रतिबंधित नहीं किया गया है, जबकि गुटका की बिक्री बंद कर दी गयी है। उन्होंने कहा कि गुटखा कोई खाद्य उत्पाद नहीं है और इससे बिक्री प्रतिबंध हटाया जाना चाहिए। गुटखा निर्माता सीओटीपीए नियामक के तहत कार्य करते हैं और वे अपने उत्पादों में वैधानिक चेतावनी भी छाप रहे थे। याद दिला दें, स्मोकलेस टोबेको ग्रोवर्स एसोसिएशन ने गत दिनों अपने इसी अभ्भियान के तहत देश के अखबारों में विज्ञापन छपवाए थे लेकिन अदालत ने इनके प्रकाशन पर रोक लगा दी थी।Source-khaskhabar

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