
घरेलु हिंसा अधिनियम 2005 के विरोध में सांकेतिक शव यात्रा एवं हस्ताक्षर अभियान
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| प्रदर्शन में शामिल छात्र/छात्राएं व् अन्य नागरिक। |
कानपुर। घरेलु हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005, तमाम विरोधो के बाद महिला संगठनों के दबाव वश 26 अक्टूबर 2006 को नियुक्त किया गया | 13सितम्बर 2005 को राष्ट्रपति से अनुमति मिलने के बाद भी इस अधिनियम हेतु पर्याप्त कदम उठाये जाने के लिए 13 महीने 13 दिन बाद कानून लागू हुआ और जबसे परिवारों की तेरहवी मनवा रहा है | किन्तु फिर भी जो क़ानून मुख्यतया महिलाए, फिर चाहे वो पत्नी रूप में हो या फिर किसी और सम्बन्ध में (Live-in-Relationship) में रह चुकी हो, को संरक्षण के लिए थे, आज भ्रष्टाचार, दुरूपयोग एवं पुरुष विरोधी बन कर रह गए हैं | कहने को तो ये अधिनियम जनतांत्रिक विधान है परन्तु गंभीरता से अध्ययन एवं इसका वर्त्तमान समय में दुष्परिणाम से बहुत स्पष्ट है कि यह जनतांत्रिक विधान नहीं जनतंत्र का परिहास है क्योंकि जनतंत्र में रहकर पुरुषों कि बलि चढाने वाले कानून स्वाभाविक ही जनतांत्रिक नहीं हो सकते |
अधिनियम की धारा ३ के तहत "घरेलु हिंसा" की परिभाषा में स्पष्ट कहा गया है की -" इस अधिनियम के प्रयोजन हेतु, प्रत्यर्थी का कोई कृत्य, लोप आचरण घरेलु हिंसा गठित करेगा अगर यह -
(क) व्यथित व्यक्ति के, चाहे मानसिक अथवा शारीरिक स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, अंग अथवा भलाई की अपहानि करता है अथवा क्षति पहुँचाता है अथवा संकटापन्न करता है अथवा करने का प्रयास करता है और इसमें शारीरिक दुरूपयोग, लैंगिक दुरूपयोग, मौखिक और भावात्मक दुरूपयोग और आर्थिक दुरुपयोग शामिल है; अथवा
(ख) व्यथित व्यक्ति को, इस दृष्टि से सताता है, अपहानि करता है, क्षति पहुँचाता है अथवा संकटापन्न करता है की उसको अथवा उससे सम्बंधित किसी अन्य व्यक्ति को किसी दहेज़ अथवा अन्य संपत्ति अथवा मूल्यवान प्रतिभूति की किसी अवैध मांग को पूरा करने क लिए मजबूर करे ; अथवा
(ग) व्यथित व्यक्ति अथवा उससे सम्बंधित किसी व्यक्ति पर खंड (क) अथवा खंड (ख) में वर्णित किसी आचरण क द्वारा धमकी देने का प्रभाव रखता है; अथवा
(घ) व्यथित व्यक्ति को चाहे शारीरिक अथवा मानसिक अन्यथा शती पहुँचाता है अथवा अपहानि कारित करता है |
परिभाषा से साफ़ स्पष्ट होता है की घरेलू हिंसा पति और पत्नी दोनों के लिए सामान है किन्तु अगर महिला द्वारा घरेलू हिंसा की जा रही हो तो उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का कोई प्रावधान न तो पति के पास है, न सास-ससुर के पास न ननद के पास | ऐसा क्यों? दामन का समाज से ये ही प्रश्न है की क्या महिला का अर्थ सिर्फ बहु या पत्नी ही है, सास या ननद नहीं ? क्या सिर्फ सास अत्याचार कर सकती है बहु नहीं ?
- क्या ये न्याय हित में मज़ाक नहीं की बिना किसी सबूत, साक्ष एवं गवाह के एक महिला के बयान मात्र पर पति और उसके माँ बाप एवं कुवारी बहन को कानूनी आतंकवाद का दंश झेलना पड़े ?
- क्या विदेशों में नौकरी कर रहे पति को झूटे मुकदमों की वजह से नौकरी से हाथ धोना पड़े, ऐसा क़ानून उचित है ? और क्या ये देश के विकास में बाधक नहीं है ?
- 2011 में 47746 महिलाओं की तुलना में 87839 पुरुषों ने आत्महत्या की, इसके बाद भी यह कहना की सिर्फ महिलाओं पर अत्याचार हो रहा है ये कहाँ का न्याय है?
इस प्रदर्शन के जरिये केंद्र सरकार एवं कानपूर नगर में जनता से अपील की गयी कि सत्य कटु अवश्य होता है पर सत्य पर पर्दा ना डाले | सच्चाई पढ़े एवं जाने | घरेलू हिंसा क़ानून के आने के बाद इससे कितने घर बचे और कितने टूटे, ये भी सोचने का विषय है |
निम्न मांगे उठायीं गयीं।
- पति एवं पत्नी शब्द हटा कर 'जीवनसाथी' प्रयोग करें |
- पुरुष एवं महिलाए हटा कर 'व्यक्ति' प्रयोग करें |
- व्यथित व्यक्ति फिर वो महिला हो या पुरुष, दोनों के लिए आश्रय गृह की सुविधा प्रदान करें |
- पारिवारिक मुकदमों को तुरंत निस्तारित करें एवं पुरुषों की पीड़ा को भी न्यायालय सुने |
- गुज़ारा भत्ता की भिन्न भिन्न धारा जैसे 125 (सी०आर०पी०सी०), घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 20, 23, हिन्दू विवाह अधिनियम की धरा 24, 25 को एक करें |
- जब तलाक, १२५ (सी०आर०पी०सी०), दहेज़ प्रतिषेध धारा 3/4, 498A पहले ही लगा हो तो अलग से घरेलू हिंसा लगाने पर रोक लगे |
- मुकदमें झूठे पाए जाने पर पति एवं उसके परिवार को मान हानि का मुआवजा पत्नी एवं उसके परिवार से मिले तथा महिला एवं उसके परिवार को उचित दंड मिले |
बैठक में सबका मानना है की घरेलू हिंसा अधिनियम में संशोधन की सख्त जरूरत है और साथ ही समाज में पुरुषों को दरिंदा समझने वाली मानसिकता को बदलना बहुत आवश्यक है | पति-पत्नी एक दूसरे के पूरक है, दुश्मन नहीं | क़ानून का डर दोनों पक्षों में बराबर लाने से ही इसका दुरुपयोग बंद होगा |
कार्यक्रम की अगवाई श्री अशोक जैन एवं अरविन्द कुशवाहा ने की | 'दामन' संस्था के फाउंडर मनुज गुप्ता के अलावा अनुपम दुबे, प्रदीप बाजपाई, अभिषेक श्रीवास्तव, दुर्गेश शुक्ल, लखनऊ से आई "ऑफ़ द कोर्ट" की अध्यक्षा डा० श्रीमती इंदु सुभाष, 'सेव फॅमिली फाउन्डेशन' के यक्ष प्रताप सिंह, एवं 'पति परिवार कल्याण समिति' के सदस्य अनिल अनाडी, मानिक मजूमदार आदि मौजूद थे | अनिल अनाडी ने अपनी कविताओ के माध्यम से समा बांधते हुए पत्नी चालीसा भी सुनाई | इस अवसर पर"स्त्रियों के लिए कर्त्तव्य शिक्षा" पुस्तक का वितरण भी किया गया |
(दामन संस्था द्वारा भेजे गए ईमेल पर आधारित)