चेन्नई। विदेश से एमबीबीएस करने वाले अधिकांश डॉक्टर भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) की अनिवार्य स्क्रीनिंग परीक्षा पास नहीं कर पाए हैं। इससे उनके देश में प्रैक्टिस करने के सपने पर पानी फिर गया है। करीब दस हजार ऎसे डॉक्टर हैं, जो परीक्षा में फेल हुए हैं। इससे उन्हें नौकरी मिलना असंभव हो गया है।
स्क्रीनिंग परीक्षा में असफल डॉक्टरों ने अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से गुहार लगाने का फैसला किया है। विदेश से एमबीबीएस पास करने वाले डॉक्टरों और उनके अभिभावकों ने रविवार को ऑल इंडिया फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एसोसिएशन के बैनर तले आगे की रणनीति बनाने के लिए बैठक की। एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ.अमीरजहां ने बताया कि विदेशों में जहां छात्रों को सात साल में डिग्री मिल रही है, वहीं यहां पर यह साढ़े पांच साल है। ऎसे छात्र हर बार स्क्रीनिंग परीक्षा में फेल हो रहे हैं, जिससे उनमें निराशा की भावना घर कर गई है।
क्या है माजरा : विदेशों से एमबीबीएस करने वाले डॉक्टरों को देश में प्रैक्टिस करने के लिए एमसीआई की अनिवार्य स्क्रीनिंग परीक्षा से गुजरना होता है। स्क्रीनिंग परीक्षा पास करने वाले डॉक्टरों को एक साल तक किसी भी विश्वविद्यालय या फिर अस्पतालों में इंटर्नशिप करना होता है।
75 प्रतिशत होते हैं असफल
साल में दो बार होने वाली स्क्रीनिंग परीक्षा में 75 प्रतिशत छात्र फेल हो जाते हैं। अभी तक सबसे ज्यादा रिजल्ट 2005 में आया, जब 50 प्रतिशत डॉक्टर परीक्षा पास कर पाए, जबकि 2003 में 9 और 2011 में केवल 27 प्रतिशत डॉक्टर ही परीक्षा में खरे उतरे। एमसीआई के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि बाहर से आने वाले डॉक्टरों को यह परीक्षा देनी ही होगी। अन्य पाठ्यक्रमों के मुकाबले मेडिसन को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। डॉक्टर मरीज की जान बचाते हैं। हम केवल इतना चाहते हैं कि प्रत्येक डॉक्टर सही तरीके से प्रशिक्षित हो। Source-patrika
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