बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
मंै अति मेहरबान आरै दयालु अल्लाह के नाम से आरम्भ करता हूँ।
मंै अति मेहरबान आरै दयालु अल्लाह के नाम से आरम्भ करता हूँ।
ست ﻮﻧﻌﺮوه، ﻮﻧﻌﺮوه، ﻮﻧﻌﺮوه، ﻮﻧﻌﺮوه، ﻮﻧﻌﺮوه، ﻮﻧﻌﺮوه، ﻮﻧﻌﺮوه، ا ﷲ ﷲ ﷲ ن شور أنفسن ، ذ ﻣ ﺮ ذ ﻐ
ذ ذ ذ ﻣ ﺎ ذ ﺤ ﻣ ﺮ ﺑ ذ ﺤ ستعينه و مده و ن ا المد لله
يئا ﻤﻋﺎأ ﻤﻋﺎأ ﻤﻋﺎأل ، ن يهده الله فلا مض ﻪﻟو، ﻪﻟو، ﻪﻟو، ﻪﻟو، ن ﻳﻠﻀ ﻳﻠﻀ ﻳﻠﻀ ﻳﻠﻀ ﻼﻫﻓﺎ ﻼﻫﻓﺎ ﻼﻫﻓﺎ ﻼﻫﻓﺎ ﻼﻫﻓﺎ ي ل، د ﻪ ﻞ ﻣ ﻞ ﻨ ﻣ ﻣ ﻨ د ﻣ ﻞ د ﻣ ﺳ ﻞ د د ﺎ ت ﻨ
عدरू و
हर प्रकार की हम्द व सना (प्रशंसा और गुणगान) अल्लाह के लिए योग्य है, हम उसी की प्रशंसा करते हैं, उसी से मदद मांगते और उसी से क्षमा याचना करते हैं, तथा हम अपने नफ्स की बुराई और अपने बुरे कामों से अल्लाह की पनाह में आते हैं, जिसे अल्लाह तआला हिदायत दे दे उसे कोई पथभ्रष्ट (गुमराह) करने वाला नहीं, और जिसे गुमराह कर दे उसे कोई हिदायत देने वाला नहीं। हम्द व सना के बाद:प्र0. -----क्या मृतक के लिए क़ुर्बानी करना जाइज़ है ?
उत्तर
मुसलमानों ने मूल रूप से उसकी वैधता पर सर्वसहमति व्यक्त ही है, और मृतक की ओर से क़ुर्बानी करना जाइज़ है ; क्योंकि आप नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान सामान्य है: ‘‘जब मनुष्य मर जाता है तो उसके अमल का सिलसिला बंद हो जाता है सिवाय तीन चीज़ों के, जारी रहने वाला सद्क़ा व खैरात, ऐसा ज्ञान जिस से लाभ उठाया जाता रहे और नेक औलाद जो उसके लिए दुआ करती रहे।’’ (1) इसे मुस्लिम, अबू दाऊद, तिर्मिज़ी, नसाई तथा बुखारी ने अदबुल मुफरद में अबू हुरैरा रजि़यल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है। और उसकी ओर से क़ुर्बानी करना जारी रहने वाले सद्क़ा व ख़ैरात में से है ; क्योंकि इस पर क़ुर्बानी करने वाले और मृतक और उनका अलावा को लाभ पहुँचना निष्कर्षित होता है।
1 सहीह मुस्लिम, अल-वसीयह, हदीस संख्या: 1631, सुनन तिर्मिज़ी -
अल-अहकाम, हदीस संख्या: 1376, सुनन नसाई - अल-वसाया, हदीस
संख्या: 3651, सुनन अबू दाऊद - अल-वसाया, हदीस संख्या: 2880,
मुस्नद अहमद बिन हंबल (2/372) सुनन दारमी, अल-मुक़द्दमह (559).
और अल्लाह तआला ही तौफीक़ प्रदान करने वाला है, तथा अल्लाह तआला हमारे ईशदूत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, आपकी संतान और साथियों पर दया और शांति अवतरित करे।’’
इफ्ता और वैज्ञानिक अनुसधान की स्थायी समिति
शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़ (समिति के अध्यक्ष), शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक़ अफीफी (उपाध्यक्ष), शैख अब्दुल्लाह बिन गुदैयान (सदस्य)।
‘‘फतावा स्थायी समिति’’ (11/417 - 418)
0 comments:
Post a Comment