200 की चोरी 10,000 में जमानत...11 महीने जेल...

Sunday, 28 April 2013

नई दिल्ली। 200 रूपये की चोरी हुई, हमारी बहादुर पुलिस ने आरोपी को गिरफतार कर जेल में डाल दिया। तारीख पर तारीख पड़ती रही। जमानत की अर्जी देने पर 10,000 जमानत राशि रखी गई। गरीब लड़का नहीं जमा कर पाया 10,000 रूपये। 10 मिनट से ज्यादा सुनवाई भी न हुई। 11 महीने तक जेल में सड़ता रहा 19 साल का बेकसूर नौजवान।
रूह कांपने वाली घटना राजधानी दिल्ली में घटित हुई। एक व्यक्ति का बटुआ सब्जी बाजार में चोरी हुआ। उसमें 200 रूपये थे। उसने पुलिस को 100 नम्बर पर सूचित किया। बहादुर पुलिस उसी रात पहुंची सब्जी मंडी। एक 19 साल के मुद्दकस को सिर्फ इसीलिए गिरफतार किया गया, क्योंकि उसके पास बटुआ था। जिसमें 200 रूपये थे।
शिकायतकर्ता ने साफ बता दिया कि यह बटुआ उसका नहीं है। पर हमारी बहादुर पुलिस को इतनी फुरसत कहां कि किसी बेकसूर को छोड़ने की जहमत उठाऐ। उसे कोर्ट में पेश किया गया। जज साहब ने लड़के को बोलने तक से मना कर दिया। आगे के केसों की सुनवाई के लिए बोलकर उसे जेल भिजवा दिया गया। 3 महीने तक एक बेकसूर जेल में बेवजह सड़ता रहा। इस बीच उसके पिता का देहांत हो गया। जिसकी सूचना तक उस मासूम को नहीं मिली।
ह्यूमन राईट्स की एक कार्यकर्ता से उसकी मुलाकात हुई। लगा अब जल्द जेल से बाहर जाएगा वह। उस कार्यकर्ता ने मुद्दकस की जमानत अर्जी दाखिल की। जज साहब ने जमानत राशि 10,000 रूपये जमा कराने का आदेश दिया। यह सुनते ही मुद्दकस के पैरो के नीचे से जमीन निकल गयी। एक गरीब लड़का जिसने अपनी जिंदगी में 10,000 रूपये एक साथ शायद ही कभी देखें हों। वह कहां से लाऐं 10,000 रूपये।
फिर शुरू हुआ तारीखों का सिलसिला और बीत गए पूरे 11 महीने, इस बीच जज साहब को यह केस सुनना बहुत छोटा लगा और हर बार बस 5-6 मिनट में सुनवाई पूरी कर दी जाती। हर बार मुद्दकस से गुनाह कुबूल करने को कहा गया। एक बार भी उसे बेगुनाह मानकर उसकी बात नहीं सुनी गयी।
पूरा मामला शीशे की तरह बिल्कुल साफ था। शिकायतकर्ता ने साफ बोल दिया था कि यह बटुआ उसका नहीं है। फिर भी उसे जेल में सड़ाया गया।
जज साहब द्वारा किए गए व्यवहार को दोगलापन ही कहा जा सकता है। एक ओर उन्हें केस इतना छोटा लगा कि इसे सुनने का उनके पास वक्त ही नहीं। दूसरी ओर समाज के लिए आरोप को बेहद घातक बताते हुए जेल में डाल दिया। 200 रूपये की चोरी के लिए 10,000 रूपये जमानत राशि क्यो?
पूरे 11 महीने बीतने के बाद मजबूर होकर मुद्दकस ने वह गुनाह कुबूल कर लिया, जो उसने कभी किया ही नहीं। इसके बाद जज साहब का हुकूम कुछ यूं था ..मुद्दकस अंसारी ने अपना गुनाह कुबूल किया इसीलिए उसे 3 महीने की सजा सुनाई जाती है। लेकिन उसने पहले ही 11 महीने जेल में बिता दिए हैं। इसलिए उसे छोड़ दिया जाए।
इन सब में दोष किसका है? कानून व्यवस्था? जज साहब का रवैया? पुलिस प्रशासन? सवाल तो कई हैं, पर जवाब कोई नहीं। अगर 11 महीने पहले ही मुद्दकस की बात एक बार इतमिनान से सुन ली जाती, तो शायद दवा के अभाव में मरा उसका बाप जिंदा होता। जवानी के 11 महीने उसे जेल में नहीं गुजारने पड़ते। उसका परिवार भुखमरी की कगार पर नहीं पहुंचता।

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