Tuesday, 13 November 2012

घर-आंगन से लेकर बाजार तक फैली दीपावली की रोशनी


बालोद. नगर समेत अंचल में नरक चतुर्दशी की धूम रही। सोमवार को घर-आंगन में 14 दीये जलाए गए। लोगों ने सुबह स्नान कर जल, रोडी, चावल, गुड़, धूप, अबीर गुलाल व फूल आदि से पूजा-अर्चना की। शाम को पहले फैक्ट्री या कार्यालय में पूजा हुई फिर घरों में।
पूजा के बाद इन दीपों को कमरों, रसोई, सीढ़ी आदि स्थानों पर रख दिया गया। लक्ष्मी पूजा की तैयारी जोरों पर है। दीप पर्व की रौनक शहर में बढ़ती जा रही है। घर-आंगन को गोबर से लीप पोतकर रंगोली से और आकर्षक बनाया जा रहा है। तैयारी का असर एक दिन पहले ही बाजार में देखने को मिला।
पूजन सामग्री लेने के लिए अंचल से लोग बड़ी संख्या में पहुंचे थे। बताशा, लाई, लक्ष्मी की फोटो, माला और दीया सलाई की खरीदारी की गई। मिठाई व बही खाते की दुकानों में भी काफी भीड़ रही। मंगलवार को लक्ष्मी व गणेश की पूजा की जाएगी।
व्यापारी दुकानों व घरों के बही खाते की पूजा कर नए खाते बनाते हैं। दुकानदार भी व्यस्त थे। पटाखा दुकानों में ग्राहकों की भीड़ लगी रही। दिवाली के आगमन के साथ ही लोग घर-आंगन में सुबह-शाम रंगोली सजा रहे हैं। लक्ष्मी पूजा के दिन दिये जलाए जाएंगे, रंगोली सजाई जाएगी।

पुराणों के अनुसार नरक चौदस के दिन भगवान श्री कृष्ण ने मरकासुर का वध कर संसार को भवमुक्त किया था। उसी की स्मृति में विजय उत्सव के रूप में नरक चतुर्दशी मनाने की परंपरा है। इस दिन यमराज की भी पूजा की जाती है। मिट्टी से यम के नाम 14 दीये बनाए गए और उन्हें प्रज्ज्वलित कर यम को  प्रसन्न किया गया।
मिट्टी के दीये जलाकर घर, आंगन, कोठार, बाड़ी, गाय कोठा और दुआरी में रोशनी की गई। साथ ही लोगों ने धान की फसल अच्छी होने और सुख-समृद्धि में वृद्धि की कामना की।

छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति में लक्ष्मी पूजा का दिन सुरहोती कहलाता है। इस दिन देवताओं के साथ-साथ अन्य देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाएगी। गाय व बैल, किसान का आधार है। इस दिन कोठे में आटे का दीपक जलाकर पशु धन के प्रति आभार प्रकट करेंगे।
लक्ष्मी पूजन का अवसर सुख, सौभाग्य और मनोवांछित कामनाओं के लिए सर्वोत्तम काल माना जाता है। इसलिए इस पर्व पर धन की देवी की पूजा की जाती है, लेकिन साधकों की मनोकामनाएं अकेली लक्ष्मी पूरी नहीं करती।
इसके लिए कुबेर व गणेश की भी पूजा करना जरूरी होता है। समुद्र मंथन में 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी। इन्हीं में लक्ष्मी रूपी रत्न भी प्राप्त हुआ था।

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