नई दिल्ली। बाल ठाकरे की मौत के बाद 21 साल की एक लड़की ने फेसबुक पर कमेंट किया। इस कमेंट को ' लोगों की धार्मिक भावना भड़काने वाला' माना गया और लड़की को अरेस्ट कर लिया गया। यही नहीं, उसके कमेंट को लाइक करने वाली एक लड़की को भी पुलिस ने धर लिया। दोनों को आईपीसी की धारा 295 (ए) (धार्मिक भावनाएं भड़काना) और आईटी एक्ट, 2000 की धारा 64 (ए) के तहत पकड़ा गया था। 

बाल ठाकरे खुद ताउम्र विवादित और भड़काऊ बयान देने के चलते विवादित रहे। 80 के दशक में उन्होंने कहा था, 'मुसलमान कैंसर की तरह फैल रहे हैं और उनका इलाज भी कैंसर की तरह ही होना चाहिए'। ऐसे में एक फेसबुक कमेंट करने और उसे लाइक करने को लेकर की गई गिरफ्तारी का हर ओर विरोध हो रहा है। अब प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने इसे गलत ठहराते हुए संबंधित पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की मांग की है।
21 वर्षीय शाहीन धांदा ने ठाकरे के निधन से महाराष्ट्र बंद पर फेसबुक पर कमेंट किया था। उसने लिखा था कि ठाकरे जैसे बहुत से लोग इस देश में पैदा होते हैं। उनका देहांत होता है। ऐसे लोगों के लिए बंद रखना कहां तक उचित है? टिप्पणी को उसकी सहेली रेणु ने लाइक किया था। इस टिप्पणी को एक अंग्रेजी दैनिक ने खबर बनाकर बनाकर प्रकाशित किया। इसके बाद शाहीन के पालघर स्थित रिश्तेदार के आर्थोपेडिक क्लीनिक पर 40 के करीब शिवसैनिकों ने हमला करके तोडफ़ोड़ की। इसके बाद एक स्थानीय शिवसैनिक की शिकायत पर मामला दर्ज कर शाहीन और रेणु को रविवार की रात गिरफ्तार किया गया था। अदालत ने लड़कियों को पहले न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया। लेकिन कुछ घंटे बाद ही 15-15 हजार रुपए के निजी मुचलके पर रिहा कर दिया। मंगलवार को पुलिस ने क्लिनिक पर तोड़फोड़ के आरोप में नौ लोगों को हिरासत में लिया है। हालांकि यह साफ नहीं है कि ये शिवसैनिक हैं या नहीं। गृह मंत्रालय ने भी मामले की रिपोर्ट मांगी है।
आप बताएं कि क्या दोनों लड़कियों ने फेसबुक पर कमेंट कर और उसे लाइक कर वाकई गुनाह किया था? क्या पुलिस ने लड़कियों को पकड़ कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत) के उनके मौलिक अधिकार का हनन नहीं किया है? क्या यह कमेंट किसी की 'धार्मिक भावना भड़काने वाला' था? अगर ऐसे कमेंट पर लोगों की गिरफ्तारी होने लगेगी तो हम-आप में से कितने लोग जेल से बाहर रह सकेंगे? क्या आपके मन में ये सवाल नहीं उठते हैं? और, इनके जवाब भी तो आपके पास होंगे? तो यहां अपने सवाल और जवाब लिख कर पूरी दुनिया को बताइए और खुल कर बोलिए कि इस मामले में दोषी कौन है और उसे सजा कौन देगा?
एक लड़की के पालघर स्थित रिश्तेदार के आर्थोपेडिक क्लीनिक पर हमला करने वाले 9 शिवसैनिकों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। इन शिवसैनिकों पर आरोप है कि उन्होंने क्लीनिक पर हमला करके तोडफ़ोड़ की थी।
शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे की अंत्येष्टि के दिन मुंबई की स्थिति को लेकर फेसबुक के माध्यम से सवाल करने वाली लड़कियों की गिरफ्तारी को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार से जानकारी तलब की है। गृह मंत्रालय ने राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक से यह जानना चाहा है कि आखिर वे कौन सी वजहें थीं, जिससे दो लड़कियों को गिरफ्तार करने की जरूरत पड़ी। सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य पुलिस से यह सवाल भी किया है कि क्या ऐसे मामलों में गिरफ्तारी से बचा नहीं जा सकता था। गौरतलब है कि केंद्र सरकार पहले ही सोशल मीडिया पर पहरा बिठाने के आरोप झेलती रही है।
केंद्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल सोशल मीडिया पर गैरजरूरी और सांप्रदायिकता फैलाने वाले विचारों पर रोक के लिए फेसबुक, ऑरकुट, यूट्यूब, ट्विटर के प्रतिनिधियों से कई दौर की बैठकें भी कर चुके हैं। इतना ही नहीं, सरकारी बाबू इन सोशल साइट्स का कैसे प्रयोग करें, इसको लेकर सरकार मानक तक बना रही है।
हाल ही में दूरसंचार मंत्री ने कहा था कि सरकार का इरादा सरकारी स्तर पर सोशल साइट्स पर नियंत्रण करना नहीं है, लेकिन सरकार चाहती है कि सोशल साइट्स चलाने वाली कंपनियां, अभिव्यक्ति के पैरोकार स्वयं कोई ऐसी सीमा निर्धारित करें, जिससे सोशल साइट्स के माध्यम से कोई देश के सांप्रदायिक सौहाद्र्र और सार्वभौमिकता के लिए खतरा न उत्पन्न कर पाए।
साइबर मामलों के जानकार पीयूष पांडे लिखते हैं कि क्या सोशल मीडिया के तमाम मंचों को अब हमें अलविदा कह पुरातन काल में लौट जाना चाहिए? या सोशल मीडिया के जरिए अभिव्यक्ति की आजादी के सवाल को अब बतौर आंदोलन खड़ा किए जाने का वक्त आ गया है? मुंबई में बाला साहेब ठाकरे के निधन के बाद मुंबई बंद की फेसबुक पर आलोचनात्मक टिप्पणी की वजह से गिरफ्तार दो लड़कियों का मसला अब ऐसे ही गंभीर सवाल उठा रहा है।
बाल ठाकरे के निधन के बाद मुंबई बंद को लाखों लोगों ने अपने-अपने नजरिए से देखा। किसी ने इसे उनका सम्मान बताया तो किसी ने शिवसैनिकों का भय। सोशल मीडिया पर बाला साहेब के अंतिम संस्कार को राजकीय सम्मान से किए जाने पर सवाल भी हैं तो उनकी कद्दावर शख्सियत पर कसीदे भी। इन टिप्पणियों के बीच मुंबई की एक 21 वर्षीय लड़की ने लिख डाला, 'ठाकरे जैसे लोग रोज पैदा होते हैं और मरते हैं और इसके लिए बंद नहीं होना चाहिए।' पुलिस ने लाखों टिप्पणियों के बीच इस लड़की की टिप्पणी को धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली मानते हुए आईपीसी की धारा 505 और आईटी एक्ट की धारा 66 ए के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया। हद तो यह कि लड़की की पोस्ट को लाइक करने वाली दूसरी लड़की को भी इन्हीं धाराओं के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया।
इस मामले में पुलिस की अति सक्रियता सवाल खड़े करती है। एक सवाल लाखों टिप्पणियों के बीच एक टिप्पणी करने वाली लड़की को निशाना बनाने का भी है। व्यवहार में कई मौकों पर फेसबुक पर 'लाइक' का मतलब पसंद करना नहीं बल्कि पोस्ट देखने की पुष्टि करना भी होता है। दरअसल, सवाल सिर्फ इस एक मामले का भी नहीं है। हाल में कई मौकों पर सोशल मीडिया पर लिखे-कहे के लिए पुलिस ने डंडा चलाया है। ममता बनर्जी के कार्टून ई-मेल करने के आरोप में बीते अप्रैल में पश्चिम बंगाल में एक प्रोफेसर को गिरफ्तार किया गया। सितंबर में कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को मुंबई में देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
बीते महीने पुडुचेरी के कारोबारी एस.रवि को वित्त मंत्री पी.चिदंबरम के बेटे कार्ति चितंबरम के खिलाफ अपमानजनक ट्वीट करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। सीआईडी ने ट्विटर खाते के जरिए रवि का पता लगाया और सूचना प्रौद्यौगिकी कानून की धारा 66ए के तहत गिरफ्तार कर लिया गया।
उस वक्त भी यह सवाल उठा था कि रवि ने अपने ट्वीट में गाली-गलौज का इस्तेमाल नहीं किया था, अलबत्ता उन्होंने आरोप जरूर लगाया। रवि का तर्क है कि उन्होंने सिर्फ वही लिखा, जिसे उन्होंने अखबारों में पढ़ा। दिलचस्प है कि जिस वक्त रवि ने ट्वीट किए थे, उस वक्त ट्विटर पर उनके फॉलोवर्स की संख्या 25 से भी कम थी। निश्चित तौर पर रवि ने ट्वीट में जो लिखा, उसे वह साबित नहीं कर सकते। लेकिन, सूचना प्रौद्यौगिकी कानून में 'अपमानजनक' शब्द की परिभाषा बहुत स्पष्ट नहीं है, लिहाजा आने वाले दिनों में इस तरह के मामले और देखने को मिल सकते हैं।
सूचना तकनीक कानून के जानकारों का मानना है कि धारा 66 ए में संशोधन की जरूरत है। साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल के मुताबिक मुंबई बंद पर आलोचनात्मक टिप्पणी वाले मामले में भी पुलिस के सामने कई चुनौतियां हैं। उनके मुताबिक, 'किसी व्यक्ति ने अपनी वॉल पर कुछ लिखा, इसे किसी ने लाइक किया तो इसका सांप्रदायिक सद्भाव बिगाडऩे से क्या संबंध। कम से कम इसे साबित करना आसान नहीं है।' मुंबई बंद टिप्पणी पर आखिरी अदालती आदेश कुछ भी हो, लेकिन एक बात साफ है कि भारत में अभिव्यक्ति की आजादी पर सरकारी अंकुश की बात को अब हल्के में नहीं लिया जा सकता। कानून की आड़ में सरकार के पास अपना चाबुक है, जिसका इस्तेमाल कभी भी किया जा सकता है।
गूगल की ताजा पारदर्शिता रिपोर्ट के मुताबिक भी भारत सरकार ने इस साल ही पहले छह महीनों में 2,319 मामलों में वेब यूजरों की गोपनीय जानकारिया मांगी हैं। भारत की तरफ से आवेदनों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वेब सेंसरशिप की तरफ बढ़ते सरकारी कदमों के मद्देनजर ही अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने साल 2012 में पहली बार भारत को निगरानी वाले देशों की सूची में रखा है। यह कहते हुए कि भारत में इंटरनेट सेवा प्रदाताओं और सोशल नेटवर्किंग कंपनियों पर कंटेंट सेंसरशिप करने के लिए खासा दबाव है।
निश्चित तौर पर सोशल मीडिया बनाम अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल अब बड़े विमर्श की बात करता है। सूचना प्रौद्योगिकी कानून का दुरुपयोग रोकने और लोगों को इन कानूनों के बारे में जागरुक करने के बाबत नए सिरे से कोशिश शुरू होनी चाहिए।
पीयूष के विचार जानने के बाद आपकी जो राय बनती हो, उसे नीचे कमेंट बॉक्स में पोस्ट कर उन तक और बाकी पाठकों तक पहुंचा सकते हैं...
Source: Bhaskar

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