Saturday, 3 November 2012

घरेलू हिंसा अधिनियम के 6 साल : कितने बचाए परिवार


Manuj Gupta.कितने परिवारों को तोड़ा घरेलू हिंसा अधिनियम ने, माफ़ कीजियेगा सवाल थोडा गलत है; हमें तो ये पूछना चाहिए कि इस कानून नें कितने परिवांरों को जोड़ा | कितने लोगो को मिला न्याय | ये एक गंभीर सोच का विषय है | 
संयुक्त राष्ट्र संघ ने राज्य के पक्षकारों को महिलाओं के विरुद्ध की जाने वाली किसी भी प्रकार की, विशेषकर परिवार के अन्दर घटित होने वाली हिंसा से सरक्षण देने को लेकर चर्चा की और १९९४ के वियेना समझौते एवं बीजिंग घोषणा और कार्यवाही के लिए प्लेटफार्म (१९९५) में मानवाधिकार ने मुद्दे के रूप में अभिस्वीकृति दी |
उसके बाद घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण का एक प्रारूप तैयार किया गया | महिला आयोग ने १९९४ में संसद में इसे प्रस्तुत किया तथा तब ही इसकी बुरी तरह आलोचना कि गयी थी | तत्पश्च्यात १९९९ एवं २००१ में पुनः इसे पेश किया गया और इसकी पुनः आलोचना हुई | किन्तु महिला संगठनों के दबाव में इस क़ानून को २४ अगस्त २००५ में लोकसभा, २९ अगस्त २००५ में राज्य सभा और १३ सितम्बर २००५ को राष्ट्रपति से मंजूरी मिल गयी | मंजूरी मिलने के बाद भी एक साल तक इस क़ानून को पास करने से पहले बहुत सारे कदम केंद्र सरकार ने उठाये किन्तु दबाव वश इस क़ानून को रोक नहीं पाए | तब तक पुरुषों की आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं था | किन्तु सेव फॅमिली फ़ाउनडेशन के सदस्य एवं आज हिन्दुस्तान की आवाज़ एवं पुरुषों के लिए अर्जुन बन चुके स्वरुप सरकार ने साफ़ साफ़ शब्दों में कहा था कि इस क़ानून का कोई मतलब नहीं है और ये परिवार तोड़ने और पुरुषों को परेशान करने का एक जरिया है |आज ६ साल बाद नतीजा साफ़ है | इनको आंकड़ो से भी समझा जा सकता है |

2 comments:

  1. Ess kanoon sey ek cheez ka toh bahut fayda hua ahi. Corruption has increased manyfold. Jitney naam FIR mein hain utney hee paisa kamaaney ka mauka.. Police encourages to name an many people as possible. Courts also happy they expect money from so many people as all have to be released on bail, drop proceedings. otherwise delay all proceedings.. one has to bear the trauma if he dont want to bribe all law enforcers.. One thing is clear the pressure of more trauma makes him more strong and determined to give a lesson to all such non-sense people who want to extract the money. I remeber a case when a person in the mortury extracted Rs. 500/- from the brother of the decesaed to share the post morteum report and that too in the year 1989.

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