Friday, 12 July 2013

बगैर आइडी प्रूफ के भी खुलेगा बैंक खाता


फतेहाबाद, [सुधीर आर्य]। गरीब परिवारों के लिए बैंक खाता खोलने की प्रक्रिया को और सरल कर दिया गया है। रिजर्व बैंक के नए निर्देशों के तहत अब इसके लिए किसी प्रकार का आइडी पू्रफ यानी पहचान का प्रमाण नहीं मांगा जाएगा। सादे कागज पर दी गई जानकारी पर ही बैंक को खाता खोलना होगा। शून्य जमा राशि [जीरो बैलेंस] पर खुलने वाले इस खाते में एक साल के दौरान एक लाख रुपये तक का लेनदेन ही किया जा सकेगा। साथ ही इन खातों में अधिकतम 50 हजार रुपये तक की रकम जमा रह सकती है।
रिजर्व बैंक ने गरीब परिवारों को बैंकिंग सेवाओं से जोड़ने के लिए खाता खुलवाने की औपचारिकताओं को एक तरह से लगभग खत्म कर दिया है। गरीब परिवारों के लिए पहचान पत्र, आधार कार्ड, राशन कार्ड और दूसरी अनिवार्यता वाली शर्ते भी हटा दी गई हैं। इन शर्तो के हटने से अब अस्थाई रूप से रह रहे लोग भी अपना खाता खुलवा पाएंगे।
हरियाणा स्थित फतेहाबाद के जिला अग्रणी बैंक अधिकारी एचएस चौहान ने बताया कि कोई भी व्यक्ति इस योजना के तहत सादे कागज पर अपना फोटो लगाकर आवेदन कर सकता है। उसे अब नगर पार्षद या सरपंच से तस्दीक करवाने की आवश्यकता नहीं है। बैंकों को मिले निर्देशों में स्पष्ट है कि गरीब परिवारों का यह खाता एक वर्ष के लिए प्रभावी होगा। इसके नवीनीकरण के लिए उपभोक्ता को केवाइसी [ग्राहक को जानो] की शर्ते पूरी करनी होंगी। केवाईसी में पहचान संबंधी अनिवार्यता है।
न चेक बुक मिलेगी, न एटीएम कार्ड:
आइडी पू्रफ के बिना खुलने वाले इन खातों पर उपभोक्ताओं को एटीएम कार्ड जारी नहीं होंगे। इसी तरह बैंक उपभोक्ता को चेकबुक भी जारी नहीं करेगा। उपभोक्ता को बैंक की शाखा में पहुंचकर फार्म भरकर ही लेनदेन करना होगा।

उत्तराखंड आपदा पर जमीनी रिपोर्ट : सरकार का आपदा प्रबंधन फेल


धारचूला के बाजार में आज से चाय मिलनी बन्द हो गयी, दो-चार दिन में खाना भी मिलना शायद बन्द हो जायेगा। आपदा की त्रासदी से कराह रहा पिथौरागढ़ जिले का धारचूला व मुनस्यारी का इलाका सबसे न्याय की उम्मीद कर रहा है। आपदा की त्रासदी आज बीसवां दिन है। मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री हरीश रावत का दौरा हो चुका है। सांसद व विधायक कई बार इलाके का दौरा कर चुके हैं। आज पता चला कि आपदा मंत्री धारचूला में हैं। 1977 में तवाघाट में आयी भीषण आपदा की त्रासदी के दौरान भी धारचूला का इलाका पिथौरागढ़ से केवल एक दिन सड़क मार्ग से कटा रहा। धारचूला में अस्सी साल से अधिक उम्र के वृद्धों की जुबान पर यह बात है कि पहली बार बीस दिन से सड़क बन्द होने के बाद उपजी स्थितियों का वह सामना कर रहे हैं।
उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद यहां की सरकारें अपनी पीठ थपथपा रही थी कि वह पहला राज्य है जिसने आपदा के लिए अलग मंत्रालय का गठन किया। आपदा प्रबन्धन के नाम पर होने वाली लूट खसौट की लम्बी फेहरिस्त है। यूनेस्को से लेकर तमाम विदेशी वित्तीय ऐजेन्सीज द्वारा मिलने वाली करोड़ों की राशि आपदा प्रबन्धन के नाम पर उत्तराखण्ड में खपाई जा रही है। उत्तराखण्ड में कार्यशाला, प्रशिक्षण, आपदा से पूर्व तथा आपदा के बाद निपटने की बात पर खर्च तो करोड़ों होते हैं लेकिन उनसे क्या निकल रहा है। यह इस बार जमीन पर धारचूला व मुनस्यारी में दिखा है। बात यहां से शुरू करते हैं हैलीकॉप्टरों से जो राशन के पैकेट भेजे गये उनकी पैंकिंग तक यहां के कर्मचारियों को नहीं आती है। जिस कारण हैली से फेंके गये राशन के पैकेट आसमान में ही फट गये और आपदा पीड़ितों को चावल-आटा केवल चाटने को मिला। इससे स्पष्ट हो जाता है कि आपका सरकारी प्रबन्धन कितना कुशल है। इस बीच हम धारचूला में हैं आपदा के बाद जब 21 जून को यहां पहली बार आये थे तो निगालपानी, गोठी के निकट मोटर मार्ग में पैदल रास्ता बचा था।

इस बार फिर 3 जुलाई को जब फिर धारचूला पहुंचे तो इन दोनों जगहों पर पैदल चलने के लिए रास्ता मात्र तक नहीं था। सीमा सड़क संगठन के इंजीनियर मोटर मार्ग नहीं खोल पाये। इस पर तो बात होनी चाहिए लेकिन पैदल रास्ता भी बचा नहीं पाये यह बात तो शर्म की है। आज 20 दिन बीत रहे हैं केवल दो स्थानों में सड़क खोली गयी है। कहने को तो यह राष्ट्रीय राजमार्ग है। इस सड़क के बन्द होने से धारचूला बाजार का नजारा कुछ इस तरह है कि राशन की दुकानों के बारदाने जो सामानों से भरे थे, खाली हो चुके हैं। गोदाम सूने हो गये हैं। एक राशन के दुकानदार ने बाताया कि आज तक जो माल नहीं बिका था वह भी इस बार बिक गया। सब्जी खाना तो यहां के लोगों के लिए अब एक स्वप्न हो गया है। 19 रूपये किलो चावल 100 रूपये में भी नहीं मिल रहा है। यहां से बलुवाकोट कुछ पैदल-कुछ जीप में जाकर राशनों के कट्ठे अपने पीठ में लादकर ला रहे हैं और सरकार को आईना दिखा रहे हैं कि इस आपदा से उपजी भूख से निपटने के लिए उसके पास कोई प्रबन्धन नहीं है। जो जनता कर रही है, वह भी सरकार नहीं कर सकती है। जौलजीबी से धारचूला के राष्ट्रीय राजमार्ग में कालिका से आगे मार्ग बन्द है।

यहां से आगे के पैंतीस से अधिक ग्राम पंचायतें और तीस हजार की आबादी चावल के दाने के लिए तरस रही है। धारचूला बाजार से आगे व्यांस, चौंदास, दारमा घाटी, तल्ला दारमा घाटी, खुमती क्षेत्र, गलाती क्षेत्र, रांथी से लेकर खेत तक का इलाका राशन के एक-एक दाने के लिए मोहताज है। धारचूला व मुनस्यारी के आपदा पीड़ित ही नहीं बल्कि अब साठ हजार की जनसंख्या को दाल, आटा, चावल की आवश्यकता है। इस पर सरकार का ध्यान अभी तक तो कतई नहीं है। धारचूला से आगे के और धारचूला तक जोड़ने वाले मोटर मार्ग कब खुलेंगे इसका जवाब सीमा सड़क संगठन दे नहीं पा रहा है। चीन तथा नेपाल सीमा के बार्डर का यह हाल है, यहां सुरक्षा तो एक सवाल है ही, क्या इस सिस्टम पर हम कोई भरोसा कर सकते हैं यह चिन्ता भी एक बात है। लेकिन हम उन हजारों लोगों की बात कर रहे हैं, जिनके घर में आटा चावल अब खतम होने को है। इस पूरे प्रक्रिया में कहीं भी सरकार तथा प्रशासन के कामकाज में यह बात नहीं है कि वह राशन आम लोगों तक पहुंचाने का कोई विकल्प दे पाया है। सोई हुई सरकार, जन प्रतिनिधियों के पीछे भाग रही नौकरशाही क्या इस इलाके के लोगों को एकमात्र राशन दे पायेगी।

आज अखबार में खबर है कि जौलजीबी से मदकोट का मोटरमार्ग दो माह में खुलेगा। गोरीछाल घाटी के सैकड़ों गांवों की बीस हजार की आबादी का भी राशन खत्म होने को है। इनके बारे में क्या बहुगुणा सरकार ने कुछ सोचा है? यही उत्तर मिलेगा कि -नहीं। मुनस्यारी के जोहार तथा रालम घाटी में लोग आज भी फंसे हुए हैं। कन्ज्योति के 35 आपदा पीड़ितों को आज तक नहीं निकाला गया है। यही हाल दारमा घाटी का भी है। यहां अधिकारी कर्मचारी बहुत हैं लेकिन उनके पास इस आपदा से निपटने का कोई सरकारी दिशा तक नहीं है। धौलीगंगा जल विद्युत परियोजना के छिरकिला बांध पर भी लोगों के सवाल हैं, नेपाल ने तो भारत पर यह आरोप भी लगा दिया है कि बांध का पानी एकसाथ खुलने से नेपाल को भारी नुकसान हो गया है। भारतीय राजदूत के ना-नुकुर के बाद यह सवाल लोगों की जुबां पर है कि 15 जून की रात्री से ही बारिश शुरू हो गयी थी तो क्यों 17 जून को क्यों बारिश का पानी एक साथ खोला गया।

ऐलागाड़ का कस्बा इसलिए बह गया कि टनल से जो अतिरिक्त पानी छोड़ा गया उसे ऐलागाड़ गधेरे के पानी ने पूरे वेग से रोक दिया और उसने ऐलागाड़ के कस्बे का नामोनिशान मिटा दिया। एनएचपीसी यह कह चुकी है कब उसकी परियोजना शुरू होगी वह कह नहीं सकती। करोड़ों का नुकसान अलग से है। पहाड़ों में परियोजना तथा बांध के समर्थक इस सवाल पर भी जवाब देंगें। मुख्यमंत्री ने सोबला, न्यू, कन्च्यौति, खिम के 171 परिवारों को यहां राजकीय इण्टर कॉलेज धारचूला में बुलाकर ठहराया है। एक सप्ताह के बाद भी प्रभावित परिवार सिमेन्ट के फर्श में बिना चटाई दरी के लेट रहे हैं। उन्हें देखने वाला कोई नहीं है। इन परिवारों की सुध क्यों नहीं ली गयी, क्योंकि हमारे आपदा प्रबन्धन महकमें के पास कार्य करने के लिए कोई रूटमैप है ही नहीं। आज इतना ही फिर कल से और क्षेत्र की स्थिति पर पर हकीकत बयां करते रहेंगे।

धारचूला और मुनस्यारी पर : दूसरी रपट

घर-बार बर्बाद हो गया, आंखों में आँसू है और सामने अंधेरा। रोज कोई नेता आता है, सपने दिखाने के लिए। बारिश से रात को नींद भी नहीं आ रही है। 15 जून के बाद की रातों की याद ने नींद भी छीन ली है। हर बारिश की बूँद की आवाज से खौफनाक अंदेशा इनके चैन को छीन कर ले गया। सोबला, न्यू, कन्च्यौती, खिम के 175 से अधिक परिवारों को जान बच जाने की थोड़ी खुशी तो है। कन्च्यौती में दो लोगों की जान इस आपदा से गयी। उनकी यादें अपने जीवन के बच जाने के बीच इन परिवारों के चेहरों पर यह परेशानी साफ तौर पर देखी जा रही है कि अब कैसे उनका कुनबा बसेगा। धारचूला व  मुनस्यारी क्षेत्र में आयी आपदा में ये चार गाँव हैं, जो अब इतिहास में दफन हो चुके हैं। इन गाँवों की वो खुशहाली अब बीते दिनों की याद बनकर रह गयी है। राजकीय इण्टर कॉलेज धारचूला के उन कक्षों में जहाँ कभी बच्चे पढ़ते थे आज इनकी शरण स्थली बन गयी है। इन लोगों को इस बात का डर है कि डीडीहाट के हुड़की, धारचूला के बरम तथा मुनस्यारी के ला, झेकला, सैणराँथी के आपदा पीड़ितों के साथ सरकार ने जो अन्याय किया है, कहीं उनके साथ भी ऐसा न हो। आज उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वह कैसे सितम्बर तक का समय गुजरे।

भाकपा (माले) की एक टीम इन दिनों धारचूला क्षेत्र में है। टीम धारचूला के सामाजिक कार्यकर्ता केशर सिंह धामी के साथ जैसे ही आज राजकीय इण्टर कॉलेज में पहुँचे तो वहाँ ठहरे आपदा पीड़ित एक-एक करके बाहर निकलने लगे। उनकी आँखें अब इन्तजार करते-करते थक चुकी हैं। पैरों में अब खड़े होने की ताकत भी नहीं बची है। एक सप्ताह से इस शरण स्थल में रहने वाले इन 175 परिवारों के सैकड़ों आपदा पीड़ित 15 दिनों से कपड़े तक नहीं बदल पाये हैं। इन गाँवों से इन्हें हैली में लाया गया। घर के साथ ही इनके तन के कपड़े भी धौलीगंगा में समा चुके हैं। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने इन परिवारों को इनके गाँवों से यहां आमन्त्रण देकर बुला तो लिया लेकिन इन्हें किस बात की आवश्यकता होगी, इसका कोई ध्यान नहीं दिया गया। इस टीम के सदस्य किसान महासभा के नेता सुरेन्द्र बृजवाल, पिथौरागढ़ छात्र संघ के अध्यक्ष हेमन्त खाती और भाकपा (माले) के जिला सचिव जगत मर्तोलिया ने इन परिवारों से अलग-अलग वार्तायें की। बात करते-करते इनकी आवाज रूक जा रही है। गला भर आ रहा है। आँखों में आँसुओं की बूँदें और आँसू से चपचपाती पलकें इनके दर्दों को स्वयं ही बता दे रही हैं।

धारचूला क्षेत्र में कीड़ा जड़ी को जमा करना भी एवरेस्ट चढ़ने से अधिक चुनौती भरा है। अपनी जान पर खेल कर इन्होंने धन इकट्ठा किया और उससे घर बनाया। जो अब धौली का निवाला बन गया है। इनके घर अब दुबारा बिछड़े गाँव में नहीं बन सकते। अब इन्हें एक नया गाँव और नया आशियाना चाहिए। तन में केवल एक कपड़ा लेकर धारचूला पहुँचने के बाद इस शहर में में पहुँच गये हैं। शहर वालों के साथ चलने की हिम्मत इनके पास नहीं है। जिनके पास खाने के लिए अपने बर्तन न हों, चटाई में लेटने के लिए इन्हें यहाँ छोड़ दिया गया है। इनके बचे कुचे जानवर अभी गाँव में हैं, जो इन्हें ढूँढ रहे होंगे। यह चिन्ता भी इनके जुबाँ पर है। धारचूला की गर्मी और मच्छरों को प्रकोप इन्हें धौलीगंगा के द्वारा दिये गये गम की तरह लग रहा है। अभी तक तो ये मात्र एक चटाई के सहारे सीलन भरे कमरे में लेटे हुए थे। बाहर हो रही बारिश की बूँदें छतों से टपक कर इनके कमरों में इनकी शान्ति को भंग कर रही है और साथ ही इनके चैन को इनसे छीनती जा रही है।

एक सप्ताह बाद भाकपा (माले) के हस्तक्षेप के चलते तहसील प्रशासन ने 50 गद्दे यहाँ बांटे गये हैं। बताये गये कि 150 गद्दे और बन रहे हैं। इससे इनके बिस्तरों की समस्या तो पूरी नहीं होगी लेकिन कुछ आराम तो मिलेगा। इण्टर कॉलेज के कमरे 15 दिनों से बन्द थे। कमरों में सीलन की बदबू अलग है और पानी रिसने के कारण पूरा कमरा निमोनिया और टाइफाइड जैसी कई बिमारियों को न्यौता दे रही है। खिड़कियों में जालियां नहीं हैं। मच्छरों के अलावा कई प्रकार के कीट कमरों में घुस कर इन परिवारों को परेशान कर रहे हैं। पहले से ही घर और गाँव खोने से परेशान इन परिवारों को कीट मच्छर तो नहीं पहचानते लेकिन सरकार को जानती थी, उसके बाद भी उसने क्यों बन्दोबस्त नहीं किया। आपदा राहत शिविर का नाम इसे दिया गया। सीधे तौर पर कह सकते हैं यह राहत नहीं आफत शिविर है। एक आफत से बचकर यहाँ पहुँचे इन पीड़ितों को इन आफतों से गुजरना पड़ रहा है। एक कमरे में चार से छः परिवारों को जानवरों की तरह ठूँसा गया है। स्कूल के कुर्सी व टेबल ही इनके सहारे हैं। धारचूला के कई स्कूली बच्चों ने इस सवाल को भी उठाना शुरू कर दिया है कि अब वे कहाँ पढ़ेंगे।

इन गाँवों के नेता और प्रशासनिक अधिकारी आपदा पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाने की जगह उनका डांटते फिर रहे हैं।‘‘अरे हमने कमरा तो दे दिया, अब हम क्या करें? इतना बहुत है’’ इन बातों से नाराज आपदा पीड़ित परिवारों के सदस्यों का कहना है कि हमें हमारे गाँवों से क्यों यहाँ लाया गया। स्कूल जाने वाले बच्चे इस स्कूल के आंगन में खेल रहे हैं। उनका बस्ता धौली गंगा में बह गया है। उन्हें आज भी पहाड़े व गिनती और कुछ कवितायें याद हैं। गणित के सवाल भी उनके दिमाग में हैं लेकिन उनको उकरने के लिए उनके पास कॉपी पेन्सिल नहीं है। बच्चों का कहना था कि हमारा स्कूल भी तो बह गया है। अब हम कहाँ पढ़ने को जायेंगे। इन बच्चों की तोतली आवाज से दिल को चीरने वाली जो पुकार निकल रही है। उसे यहाँ बार-बार आने वाले विधायक, सांसद, मंत्री और प्रशासनिक अमले के अधिकारी सुन तक नहीं पा रहे हैं। कन्च्यौती के मोहन सिंह का कहना है कि तीन महिने कैसे गुजरें? यह हमारी पहली समस्या है।

स्कूल में ज्यादा समय नहीं रह सकते। आपदा मंत्री टिन शैड बनाने की बात कह गये हैं। इसे बनने में तो महिने बीत जायेंगे। जब गद्दे व कम्बल देने में इतने दिन बीत गये। खिम की सरस्वती बिष्ट का कहना है कि हमारे खेत बह गये। जानवर भी साथ में धौली में बह गये। हम हम क्या करें। कैसे अपनी जिन्दगी गुजारें। इस जिन्दगी को गुजारने के लिए कौन हमारी मदद करेगा। न्यू ग्राम की नीरू देवी तो काफी दुःखी है। कहती है कि ‘‘कभी न सोचा था कि कभी अपना गाँव छोड़ेगे। अब हमें कैसे एक गाँव मिलेगा। जहाँ हम सब महिलायें इस त्रासदी को आपस में एक दूसरे में बांट सकेंगी।’’ सोबला के नेत्र सिंह का कहना है कि गाँव तो गया। अब नहीं लगता है कि दुबारा हमारा कोई गाँव होगा। सरकारें तो झूठ बोलती हैं। झूठ से कुछ दिनों तक सन्तोष मिल सकता है लेकिन आगे नहीं। यह बात तो केवल चार उन गाँवों की है। जो अपना सब कुछ धौलीगंगा को सौंपकर खाली हाथ इण्टर कॉलेज के शरण स्थली में बैठकर टकटकी लगा बैठे हैं कि अब क्या होगा?

धारचूला और मुनस्यारी पर : तीसरी रपट

उत्तराखंड में आपदा की त्रासदी को 25 दिन बीत गये, अभी तक राहत एवं बचाव की तस्वीर साफ नहीं हो पायी है। धारचूला और मुनस्यारी के इन दुर्गम इलाकों तक देहरादून में किये गये दावे कुछ अभी तक नहीं पहुचे हैं और कुछ अव्यवहारिक नजर आने लगे हैं। उत्तराखंड की सरकारें अभी तक यह नहीं समझ पायी हैं कि आपदा की घटनाओं के बाद राज्य सरकार को किस तरह से जनपक्षीय सरकार बनने की ओर बढ़ना चाहिए। धारचूला और मुनस्यारी दोनों तहसीलों में अभी तक सरकार के मंत्री और नौकरषाह दौरा कर लौट चुके हैं। आपदा पीड़ितों के जो सवाल हैं उनका हल न होना और उनको आपदा की आफत से राहत न मिलना सरकार के हर दावे को झुठला रहा है।

मुनस्यारी के जिमीघाट से लेकर जौलजीवी तथा धारचूला के दारमा से जौलजीवी तक सैकड़ों परिवार ऐसे हैं जिनके आवासीय भवन बेनाप जमीन पर बने थे और उनका घर-बार आपदा की भेंट चढ़ चुका हैं। सरकार के पुराने नियमों को देखें तो इन परिवारों को राज्य सरकार की ओर से दी जाने वाली राहत नहीं मिल सकती। हो भी यही रहा है। अभी तक इस तरह के सैकड़ों परिवार राहत के लिये राज्य सरकार की ओर टकटकी लगाये बैठे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में एक घर में पिता सहित पुत्रों का अलग-अलग चूल्हा जलता है। राषन कार्ड और भाग दो रजिस्टर में भी नाम अलग-अलग हैं, लेकिन पिता के जीवत होने के कारण जमीन का मालिक मुखिया होने के कारण पिता है, इन स्थितियों में केवल पिता को ही मुआवजे का हकदार बनाया जा रहा है। गृह नुकसान के लिये मिलने वाली दो लाख रूपये की राषि में भी यही स्थिति है। चूल्हे के हिसाब से हकदारी का मामला यहां की सरकार की समझ में नहीं आ रहा है। अभी हाल में ही सरकार ने एक और अव्यवहारिक घोशणा कर डाली कि जिन परिवारों के आवासीय मकान टूट गये उन्हें रहने की व्यवस्था के लिये सरकार 6 महीने तक दो हजार रूपये किराया देगी। उसके पीछे सरकार का शड्यंत्र भी है।

सरकार चाहती है कि आपदा पीड़ितों को एक जगह पर न रहने दिया जाय ताकि वे पुनर्वास के सवाल पर राज्य सरकार को घेर न सकें। यह तो एक बात है लेकिन धारचूला, बलुवाकोट, मदकोट, जौलजीवी जैसे कस्बों की बात करें तो यहां किराये के लिये कमरे नहीं हैं। धारचूला में अचानक दो सौ से अधिक परिवारों के लिये किराये के कमरे कहां से पैदा हो जायेंगे। इस बात को देहरादून में बैठी सरकार नहीं समझ पा रही है। एक और उदाहरण है कि घट्टाबगड़ में 55 दलितों के परिवार सड़क में आ गये हैं। इन परिवारों को किराये में घर कहां मिलेगा। क्योंकि घट्टाबगड़ जैसे गांव के आसपास के गांवों को देखें तो बंदरखेत, तोली गांव में एक दो घर ही ऐसे हैं जो एक दो कमरों को किराये पर लगा सकते हैं ऐसे में किराये का यह फरमान राज्य सरकार की हवाई सोच को दिखाता है।

धारचूला तहसील में खेत, छिरकिला, तीजम, सुमदुम, धारचूला नगर, गोठी, नयाबस्ती सीपू, बलुवाकोट, घाटीबगड़, गो, जौलजीवी, घट्टाबगड़, लुमती, मोरी, बांसबगड़, छोरीबगड़, बंगापानी, उमरगड़ा, मदकोट, भदेली, तल्ला दुम्मर, दराती, सेविला, जिमीघाट जैसे कई स्थान हैं जहां गोरी गंगा, काली गांगा तथा धौलीगंगा से भूकटाव हो रहा है। इन स्थानों को बसाया जाना जरूरी है। नहीं तो बेघरबार लोगों की संख्या हजारों में हो जायेगी। अभी सिंचाई विभाग ने धारचूला, बलुवाकोट, जौलजीवी और मदकोट के लिये सुरक्षा हेतु प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा हैं आज 25 दिन बीत जाने के बाद भी राज्य सरकार ने इन कस्बों की सुरक्षा के लिये एक ढेला भी स्वीकृत नहीं किया है। विधायक और सांसदों के पास करोड़ों रूपये की निधियां हैं, लेकिन इन कस्बों को बचाने के लिये उन्होंने एक रूपये भी नहीं दिया है। बलुवाकोट में भूकटाव को रोकने के लिये संबंधित विभाग ने 62 लाख रूपये का प्रस्ताव भेजा था। इसकी स्वीकृति नहीं मिलने से बलुवाकोट वासियों ने ‘बलुवाकोट बचाओ संघर्श समिति’ बनाकर सरकार के खिलाफ आर-पार की लड़ाई छेड़ दी है।

धारचूला विधायक हरीष धामी और सांसद प्रदीप टम्टा पट्टी पटवारी की तरह इधर-उधर दौड़ लगाने में हैं। उनका न प्रषासनिक अधिकारियों में नियंत्रण है और न ही वह राज्य सरकार से कोई बजट ला पा रहे हैं। इससे इस क्षेत्र को बचाने और राहत कार्यों में तेजी लाने के प्रयास ठंडे बस्ते में हैं। अभी भी आपदा की दृश्टि से खतरनाक जगहों में आपदा पीड़ित टैण्टों में रह रहे हैं। मौसम विभाग एक दो दिन खतरे का बता रहा है लेकिन यहां तो लोगों का हर पल खतरे में बीत रहा है। आज तक किसी भी परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहंुचाने की जहमत नहीं उठायी। इस क्षेत्र के सरकारी और गैर सरकारी विद्यालयों को आज से खोलने जा रही है। लेकिन जिन विद्यालयों में आपदा पीड़ित रह रहे हैं उन्हें सरकार कहां रखेगी इसका विकल्प सरकार के पास नहीं है। पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी और आपदा मंत्री जौलजीवी से आगे को बड़े कि घट्टाबगड़ में आपदा पीड़ितों से मिलेंगे लेकिन पैदल चलन से बचने के लिये दोनों आधे रास्ते से लौट गये। यह हमारी सरकार और प्रषासन का चेहरा है।

धारचूला से मुनस्यारी तक कई आईएएस और पीसीएस अधिकारी बिठाये गये हैं जो आपदा राहत कार्यों में हाथ बढ़ाने का दावा कर रहे है, लेकिन हकीकत यह है कि यह अधिकारीगण सड़कों में गाड़ी से दौड़ रहे हैं। किसी को भी किसी गांव में जाते अभी तक नहीं देखा गया है। धारचूला में तो हाल यह है कि सरकार की ओर से नियुक्त नोडल अधिकारी आईएएस दीपक रावत सुबह कुमाउ मंडल विकास मंडल के आवास गृह से हैलीपैड जाते है और सायं हैलीपैड से लौटकर आवासगृह लौट आते हैं। उनसे मिलने के लिये उन्ही से अनुमति लेनी होती है जो मिल नही रही है। नोडल अधिकारी के रू9 में तैनात दीपक रावत न जन प्रतिनधियों की सुन रहे हैं और न ही आपदा पीड़ितों को राहत देने में कोई भूमिका निभा रहे हैं।

बड़ी बात यह है कि मुख्यमंत्री तक धारचूला आते हैं लेकिन मुख्यमंत्री के पास न कोई लाल बत्ती थी और मुख्यमंत्री का बोर्ड लेकिन दीपक रावत अपने साथ नैनीताल से आते समय एक एमडी केएमवीएन तथा एक नीली बत्ती लेकर आये थे। जिसे एक प्राइवेट वाहन में लगाकर घूम रहे हैं और उत्तराखंड की नौकरषाही की सत्ता में पकड़ को जाहिर भी कर रहे हैं। स्कार्पिओ जैसे लक्जरी वाहन में उन्होंने एक कुर्सी भी डाल रखी है ताकि उनकी षानषौकत में किसी भी प्रकार की कोई कमी न रह जाये। उत्तराखंड में नौकरषाही आपदा के समय सत्ताधारियों में अपनी दाल गला रहे हैं इससे बडा उदाहरण दूसरा नहीं हो सकता। उत्तराखंड में सभी जानते हैं कि सस्ते गल्ले के दुकान से मिलने वाले राषन से दस दिन भी परिवारों का निवाला नहीं चल पाता है। बीस दिन निजी दुकानों से राषन खरीदकर यहां के चूल्हे जलते हैं। पटवारी से लेकर मुख्य सचिव तक यही अलाप रहे हैं कि हमारे गोदाम राषन से भरे हैं। लेकिन इन गोदामों से मिलने वाला राषन एक माह के लिये र्प्याप्त नहीं होता। इस बात को कोई समझने को तैयार नहीं है। सस्ता गल्ले की दुकानों को डिपार्टमेंट स्टोर में तब्दील करते हुए इनको राषन का बिक्री केन्द्र बनाया जाना चाहिए था, लेकिन इस पर कोई भी बात करने को तैयार नहीं है। एक सप्ताह के बाद धारचूला और मुनस्यारी की पचास हजार से अधिक की आबादी राषन को लेकर सड़क में उतरने वाली है। क्या तभी जाकर यह सरकार चेतेगी।

जगत मर्तोलिया

जिला सचिव

भाकपा माले पिथौरागढ़  

Source: B4M

10 सीक्रेट्स जो मैरिड लाइफ के आनंद को बढ़ा देंगे 100 गुना!

हाल ही में एक सेक्स सर्वेक्षण में सामने आया है कि महिलाएं अपने साथी के लिए प्यार की फीलिंग को महत्व देती हैं, जबकि पुरुषों को अपने साथी को सेक्सी कपड़ों में देखना ज्यादा पसंद आता है।

महिलाओं में प्रेम की भावना अधिक होती है। वे अपने साथी को आकर्षित करने और उनका प्यार पाने के लिए हमेशा प्रयास करती हैं।

हाल ही में एक सर्वे में विवाहित जोड़ों के सेक्स सीक्रेट्स को लेकर हुए एक सर्वे से सामने आया है कि 68 फीसदी पुरुष अपने साथी के साथ सबसे अच्छे सेक्शुअल रिलेशन में जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। वहीं, इसमें महिलाओं की संख्या केवल 45 फीसदी ही है। 

 जानिए संबंध बनाते समय किन 10 बातों का ध्यान रखें विवाहित जोड़ें...

हालांकि, 42 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि उनके पति ने कभी उन्हे ऑनलाइन अश्लील मूवी देखने के लिए नहीं कहा है। केवल 21 प्रतिशत पुरुषों ने कहा कि उन्होंने ऐसा किया हैं। डीकिन विश्वविद्यालय से रॉबर्ट कमिंस द्वारा 79 प्रतिशत पुरुषों का कहना है कि वे पत्नियों के साथ अपनी सेक्स लाइफ से काफी खुश हैं। वहीं, महिलाओं में केवल 61 प्रतिशत ही पति के साथ सेक्स लाइफ से खुश हैं।

बच्चे शादीशुदा लाइफ के लिए एक वरदान होते हैं, लेकिन वे आपकी सेक्स लाइफ में कभी-कभी बोरियत भी पैदा कर देते हैं। 52 प्रतिशत महिलाओं और 49 प्रतिशत पुरुषों का मानना हैं कि बच्चे होने से पहले उनकी सेक्स लाइफ ज्यादा बेहतर थी।

42 प्रतिशत पुरुषों का कहना था कि उनकी इच्छा रहती है कि सेक्स का आरंभ उनके साथी द्वारा किया जाए, जबकि 41 प्रतिशत पुरुष ओरल सेक्स और 30 प्रतिशत एनल सेक्स की इच्छा रखते हैं।



सर्वे के अनुसार 35 प्रतिशत महिलाएं सेक्स की शुरुआत फोर प्ले से करना पसंद करती हैं। वहीं, 32 प्रतिशत महिलाएं को अपने पति के साथ प्यार भरी बातें करते हुए सेक्स की शुरुआत करना पसंद होता है और 28 प्रतिशत महिलाएं पति द्वारा शुरुआत करना व 22 प्रतिशत महिलाएं ओरल सेक्स से सेक्स का आरंभ करना पसंद करती हैं।  


28 प्रतिशत पुरुष 13 प्रतिशत महिलाओं ने अपने जीवन साथी को धोखा देने की बात को स्वीकार की है। एक ही समय में फोन पर अपने साथी को धोखा देने में 34 प्रतिशत पुरुष पकड़े गए, वहीं पुरुषों की तुलना में 20 प्रतिशत महिलाएं अपने पति के साथ धोखा करते हुए पकड़ी गई हैं

61 प्रतिशत महिलाओं का और 80 प्रतिशत पुरुषों का कहना है कि वे अपने साथी के साथ अपनी सेक्स लाइफ से संतुष्ट हैं।


Sunday, 7 July 2013

स्‍मार्ट फोन से फेसबुक पर अपलोड हुई हनीमून की तस्‍वीरें, शादी टूटने की आई नौबत



आगरा. मध्‍य प्रदेश की सरकार लिव-इन रिलेशनशिप को हरी झंडी देने की तैयारी में है तो फुटबॉल के स्‍टार खिलाड़ी रोनाल्‍डो अपने अफेयर को लेकर विवादों में हैं। लेकिन इस बीच स्‍मार्टफोन पर जरा सी लापरवाही से शादीशुदा जिंदगी में दरार की खबरें आईं हैं। स्‍मार्ट फोन का उपयोग करना आपको नहीं आता है तो बहुत बड़ी परेशानी हो सकती है। आगरा, मथुरा और एटा में ऐसे तीन लोगों की पत्नियों की अंतरंग फोटो गलती से फेसबुक पर अपलोड हो गई। इन्हें सामाजिक रूप से शर्मसार होना पड़ा। दो लोगों के वैवाहिक जीवन में खटास आ गई। पुलिस की साइबर टीम ने जब समझाया तब पत्नी घर लौटी।

आगरा में सदर का एक व्यापारी हनीमून पर विदेश गया था। वहां उसने मजाक में पत्नी की ऐसी फोटो खींची, जो बेडरूम तक ही सीमित रह सकती हैं। लौटकर आने के बाद वह फोटो डिलीट करना भूल गया। उसने स्मार्ट फोन से फेसबुक लॉगऑन किया। गलती से ऑटो सिंक का ऑप्शन दब गया और मोबाइल में मौजूद तमाम तस्वीरें फेसबुक पर सार्वजनिक हो गईं। तमाम लोगों के फोन आने लगे। दोनों बेहद शर्मसार हुए। पत्नी को लगा कि पति ने जानबूझकर बदमाशी की है। उसकी शादी जनवरी में ही हुई थी। पत्नी सदर थाना पति के खिलाफ मुकदमा लिखवाने को पहुंची। पुलिस की पूछताछ में व्यापारी हमेशा कहता रहा कि उसने फोटो फेसबुक पर नहीं डाले हैं। सीओ सदर रामसुरेश यादव ने मामले को साइबर क्राइम टीम को दे दिया।

मोबाइल की जांच हुई तो पाया गया कि मोबाइल में ऑटो सिंक ऑप्शन ऑन था। इसी वजह से तमाम अंतरंग तस्वीरें फेसबुक पर ऑनलाइन हो गई थी। साइबर क्राइम टीम ने सभी फोटो डिलीट करवाए। इसके बाद पुलिस ने पति और पत्नी के परिवारवालों की पंचायत करवाई। इसमें साइबर क्राइम टीम ने पत्नी और उसके परिवारवालों को समझाया कि स्मार्ट फोन ऑपरेट करने में जानकारी के अभाव की वजह से ऐसा हुआ था। काफी समझाने के बाद पत्नी ने शिकायत वापस ली और पति के पास रहने गई।

दूसरा मामला मथुरा का है। यहां भी एक अधिकारी ने फेसबुक पर ऑटो सिंक ऑप्शन ऑन कर दिया था। पत्नी मुकदमा दायर करने पहुंची। लेकिन साइबर क्राइम पुलिस के बीच बचाव पर दाम्पत्य जीवन संभल सका। एटा में आलू व्यापारी के खिलाफ पत्नी ने दो सप्ताह पहले मुकदमा दर्ज करवाया था। उसने आरोप लगाया कि पति ने बदनाम करने के लिए फेसबुक एकाउंट हैक कर आपत्तिजनक तस्वीरें डाल दी हैं। यहां भी मामला ऑटो सिंक का था। बाद में पता चला कि पत्नी ने ही दो महीने पहले पति के स्मार्ट फोन पर फेसबुक लॉग किया था। इसके बाद पति ने गलती से ऑटो सिंक ऑप्शन दबा दिया। यहां भी परिवार टूटने से बचा।

आईटी एक्सपर्ट उदय किशोर कहते हैं कि ऑटो सिंक ऑपशन की सेटिंग ध्यान से पढ़नी चाहिए। फेसबुक कनेक्ट करते ही एक नोट आता है- डू यू वांट फोटो गैलरी ऑटो सिंक। इस ऑप्शन के आने पर नो करना चाहिए। यदि भूलवश ऐसा हुआ तो तमाम तस्वीरें फेसबुक पर अपने आप अपलोड हो जाएंगी।
बरेली डीआईजी बन मेरठ की युवती से चैटिंग करना एक सिपाही को महंगा पड़ा। डीआईजी ने उसे तत्काल प्रभाव से लाइनहाजिर कर विभागीय जांच के आदेश दिए हैं। मेरठ के थाना सिविल लाइन क्षेत्र के पांडवनगर निवासी एक युवती की फेसबुक पर डीआईजी बरेली विजय सिंह मीणा की फ्रेंड रिक्वेस्ट आई थी। इस युवती के अनुसार उसने रिक्वेस्ट को स्वीकार कर लिया।

कई दिनों तक युवती और डीआईजी के फेसबुक से आपस में चैटिंग होती रही। कुछ दिन पहले युवती की फेसबुक पर दोस्त बने डीआईजी से उनके मोबाइल पर बात करने की इच्छा हुई। इस पर उसने मोबाइल नंबर लेकर उस पर फोन किया तो डीआईजी बरेली विजय सिंह मीणा ने युवती से चैटिंग से इंकार कर दिया। अलबत्ता, डीआईजी ने युवती से घटना की जांच कर दोषी के खिलाफ कार्रवाई की बात कही। डीआईजी बरेली विजय सिंह मीणा ने रविवार को बताया कि जांच में पता चला कि कार्यालय में ही तैनात एक सिपाही अनंग लाल उनके फेसबुक एकाउंट से युवती के साथ चैटिंग कर रहा था। उन्होंने बताया कि उनके पदेन फेसबुक अकाउंट चलाने के लिए अनंग लाल की ड्यूटी लगाई गई थी। डीआईजी के अनुसार अनंगपाल उनके पदेन फेसबुक एकाउंट पर आने वाली शिकायतों को हमारे सामने रखता था, जिसका वे अपने स्तर से समाधान करते थे। डीआईजी के अनुसार अनंगपाल द्वारा उनके पदेन फेसबुक एकाउंट का दुरुपयोग किए जाने का खुलासा होने के बाद उसको तत्काल प्रभाव से लाइनहाजिर करने के साथ ही उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी की जा रही है।